Chamba News: जनजातीय क्षेत्र पांगी में नौ फरवरी से पारंपरिक जुकारू उत्सव की शुरुआत होगी। इसे लगातार 12 दिनों तक पांगी में मनाया जाएगा। इस उत्सव को आपसी भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। चंबा में रहने वाले पांगी वासी इस उत्सव को 11 फरवरी को मनाएंगे। इस दौरान जश्न के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी झलक देखने को मिलेगी। लंबे समय से जुकारू उत्सव को मनाने की परंपरा पांगी घाटी के अलावा बाहरी राज्यों और प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बसे पांगी घाटी के लोग निभा रहे हैं। इस उत्सव को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। जुकारू उत्सव को लेकर लोग घरों में राजा बलि के चित्र बनाते हैं। इसकी 12 दिनों तक रोजाना पूजा की जाएगी। घर के अंदर लिखावट के माध्यम से लोक शैली में अल्पनाएं रेखांकित की जाती हैं। विशेष प्रकार के पकवान भी इस दौरान घरों में बनाए जाएंगे। दोस्तों और सगे संबंधियों को दावत के लिए घरों में आमंत्रित किया जाएगा। सिल्ह की शाम को घर के मुखिया द्वारा भरेस भंगड़ी और आटे के बकरे बनाए जाते हैं। बकरे बनाते समय कोई भी किसी से बातचीत नहीं करता है। पूजा की सामग्री को एक अलग कमरे में ही रखा जाता है। रात्रिभोज के बाद गोबर की लिपाई जिसे चौका कहते हैं, वह की जाती है। गोमूत्र और गंगाजल छिड़का जाता है। गेहूं के आटे व जो के सत्तुओं से मंडप लिखा जाता है। इसे चीका कहा जाता है। मंडप के ऊपर राजा बलि की आटे से बनी मूर्ति की स्थापना की जाती है। इसे स्थानीय बोली में जन बलदानों कहते हैं। इसके अलावा आटे से बने बकरे, मेढ़े आदि मंडप में तिनकों के सहारे रखे जाते हैं। मंडप बनाने वाला राजा बलि की पूजा करता है। घाटी के बहुत से घरों में यह परंपरा लुप्त होती जा रही है। कई लोग आज भी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। मिंधल माता मंदिर के पुजारी भूपेंद्र शर्मा ने बताया कि पांगी में जुकारू उत्सव 12 दिनों तक मनाया जाएगा। इसे मनाने के लिए लोग साल भर इंतजार करते हैं।